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चलचित्र

मनोरंजन मानव जीवन को आवश्यकता है। मनुष्य जब दिन भर की भाग-दौड़ से थक जाता है, तो उसे किसी-न-किसी प्रकार का मनोरंजन चाहिए, जो उसकी थकान मिटाकर उसे पुन: तरोताजा कर दे। ऐसे में सिनेमा या चलचित्र आज के युग में मनोरंजन का सर्वाधिक लोकप्रि साधन है।


चलचित्र की लोकप्रियता का रहस्य यह है कि तीन घंटे के लिए व्यक्ति इसमें खो जाता है तथा जीवन को सुंदर से सुंदर कहानी उसे प्रत्यक्ष रूप में देखने को मिलती है। पटकथा के उतार-चढ़ाव में वह स्वयं भी डूबता उतरता है। मंत्रमुग्ध करने वाले गीत, अभिनेताओं का कुशल अभिनय, दृश्य-विधान तथा कथानक सभी कुछ उसे कल्पना के मधुर लोक में से जाते है तथा वह आनंद के संसार में विचरण करने लगता है।

चलचित्र का नाम सुनते ही मन में आनंद की एक लहर हिलोरे मारने लगती है। सिनेमा आज के युग की अनिवार्यता बन गया है तथा निःसंदेह यह मनोरंजन का सर्वश्रेष्ठ साधन है। यद्यपि वीडियो के आगमन से सिनेमाघरों में चलचित्र देखने जाने वालों को संख्या में कुछ कमी अवश्य आई है, परंतु सिनेमाघर में फिल्म देखने का आनंद ही कुछ और है। चलचित्रों से केवल लाभ ही हो, ऐसी बात नहीं।

अच्छी फिल्में जहाँ राष्ट्रीय एकता को पुष्ट करती है तथा हममें नैतिक मूल्यों का संवर्धन करती हैं, वहीं बॉक्स ऑफ़िस फार्मूले वाली फिल्में नैतिक पतन का कारण भी बनती है। अधिकांश फ़िल्मों के कथानक लगभग एक से होने लगे है तथा उसमें यदि हिंसा, तस्करी, मद्यपान, कैबरे नृत्य के दृश्य न हों, तो यह फिल्म चल ही नहीं सकती। सिनेमा के दुर्व्यसन से समाज शनैः-शनैः पतन के गर्त में गिरता जा रहा है। चलचित्र मानव-जाति के लिए अमूल्य उपहार है। अत: फ़िल्म-निर्माताओं को चाहिए कि विज्ञान के इस उपहार का सदुपयोग करें तथा इसके माध्यम से उच्व सांस्कृतिक, सामाजिक तथा नैतिक परंपराओं

- प्रेरणा यादव


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