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 संघर्ष जितना अधिक होगा, संवेदना उतनी ही अधिक छुएगीः ऊषा किरण खान

साहित्य आजतक के मंचपर अंतिम दिन 'ये जिंदगी के मेले' सेशन में देशकी जानी मानी लेखिकाओं ने साहित्य, लेखन और मौजूदा परिदृश्य पर बातें कीं. इनमें लेखिका उपन्यासकार डॉ. सूर्यबाला, लेखिका ममताकालिया, लेखिका ऊषाकिरण खान शामिल हुईं. 


इस दौरान कार्यक्रम मेंडॉ. सूर्यबाला ने कहाकि आज मेरेसामने तीसरी पीढ़ी बैठी सुनरही है. मैंने जब लिखना शुरू किया, तब आज के जैसारंगारंग माहौल नहींनहीं होता था. उस समय लेखनका वातावरण अलगहोता था. आज लिखते हुए 50 सालहो चुके हैं.  

उन्होंने बताया कि लेखनके बीच इसीतरह महिला कथाकार के तौरपर पहचान बनी. बगैर संघर्ष के किसीभी रचनाकार के हाथमें कलम नहींआती.  मैंने बहुत 12 इंच का घूंघट निकालकर स्वतंत्रता पाई है. एक साल पहलेकौन देश को वासी... उपन्यास आ चुकाहै, जिसमें जीवनसंघर्ष को बयांकिया गया है.  

डॉ. सूर्यबाला ने कहा कि कैलाश गौतम की कविता 'अमौसा का मेला' को नई पीढ़ी जरूर पढ़े. आज जब श्रद्धा आफताब की बातें सुनती हूं तो लगता है कि पहले ऐसा नहीं था. मेरे बचपन में ऐसा माहौल नहीं होता था. इस तरह का 'प्रेम' नहीं था. उन्होंने कहा कि बचपन में प्रेम कविताएं भी लिखती थी. 


संघर्ष जितना अधिक होगा, संवेदना उतनी ही अधिक छुएगीः ऊषा किरण खान

जिंदगी के मेलेसेशन में ऊषाकिरण खान ने कहाकि मेरे पिताकृषि संपन्न थे. मैं बचपन से लेकरएमए तक हॉस्टल में रही. कम उम्र मेंपिता नहीं रहेतो कई तरहकी परेशानियों से सामना करना पड़ा. जिसके जीवन मेंजितना अधिक संघर्ष होगा, संवेदना उसे उतनाही अधिक छुएगी, इसी बीचअगर उसके हाथमें कलम आ गया, तो उसकी लेखनी उतनी ही बेहतर होगी.

उन्होंने बताया कि कुछहॉस्टल अंग्रेजों ने शुरूकिए थे. वहांअक्सर हिंदी साहित्य से जुड़ाव होता गया.  पढ़ाई के दौरान यूथ फेस्टिवल में शामिल होते थे. इसी सिलसिले मेंसाहित्य का वातावरण बनता गया. जिंदगी का यहीमेला आज यहांतक लेकर आया है.

उन्होंने कहा कि मेरेपिता और मेरेपति के पितामित्र थे. गांधीवादी समाज सुधारक लोग थे. इसी बीच हमारी मित्रता हो गई और बचपनमें ही मित्र से शादीहो गई.  इसीबीच शादी हो गई. इसके बाद काफीहंगामा भी हुआ. हम वैचारिक रूपसे दोनों घुलेमिले रहे.  

हमारी रचनाओं में उतर आता है जिंदगी का मेलाः ममता कालिया  
इस दौरान लेखिका ममताकालिया ने कहाकि हमारे समयमें छोटे-छोटेमेले लगते थे, लेकिन वहां खूबमजा आता था. मुझे मेले के नामपर साहित्य यादआता है, जिसमें जीवन की कई कहानियां देखने समझने को मिलती थीं.

उन्होंने अपने बचपनकी यादों का जिक्र करते हुएकहा कि नागपुर में लगेमेले में एक चवन्नी मिली थी, जिसमें ही पूरामेला देखकर लौटना था. यहीजिंदगी का मेलाहै, जो हमारी रचनाओं मेंउतर आते हैं. उन्होंने कहा कि मेलेमें सभी अपनी-अपनीयादों को संजोकर ले जातेहैं. इस दौरान उन्होंने अपनासाहित्यिक संघर्ष की बातें भी बताईं. 

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