भारतवर्ष में जितने भी धर्म या संप्रदाय शुरू हुए हैं, इन सब का एक ही सिद्धांत है कि मनुष्य का मन बहुत चंचल है। चंचलता दूर करके उसका एकाग्र करना बहुत आवश्यक है। बिना मन की एकाग्रता के किसी भी क्षेत्र में मनुष्य को सफलता प्राप्त नहीं हो सकती। चित्त की वृत्तियां अनेक है, चित्त की उन सब वृत्तियों को एकाग्र करने से ही और प्रगाढ़ता आती है। जरा विचारे, सूर्य के किरणें पृथ्वी पर फैली होती है, जब एक आतशी शीशा उनके सामने रखा जाता है तब उनकी किरणों एक बिंदु पर केंद्रित हो जाती है और उनकी शक्ति आ जाती है। जिस स्थान पर भी वह सूर्य बिंदु केंद्रित होगा वही अपनी शक्ति से अग्नि प्रज्वलित कर देता है। इस प्रकार जो भी मनुष्य अपनी बिखरी हुई शक्तियों को जितना अधिक एकाग्र कर लेता है उसको उतनी ही अधिक सफलता प्राप्त होती है, चाहे वह कर्म लौकिक हो या पारमार्थिक। विद्यार्थी का ही उदाहरण लीजिए - जो विद्यार्थी जितना अधिक मन लगाकर पढ़ेगा उसको उतनी ही अच्छी सफलता मिलेगी। मन की एकाग्रता का यह सिद्धांत प्रत्येक कार्य पर लागू होता है। इसीलिए हमारे सभी धर्म ग्रंथ मन की एकाग्रता पर अधिक महत्व देते हैं क्योंकि बिना इसकी स
Niceee
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ReplyDeleteUpasana:👍👍👍
ReplyDeleteDeepanwita Dey : 👍👍
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