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दूरदर्शन

आधुनिक युग वैज्ञानिक युग है। विज्ञान ने मनुष्य को नए-नए आविष्कार उपहारस्वरूप दिए हैं। दूरदर्शन उन्हीं वैज्ञानिक उपलब्धियों में से एक है, जिसके द्वारा हम घर बैठे हर प्रकार का मनोरंजन प्राप्त कर लेते हैं। दूरदर्शन पर हम केवल नाचने-गानेवालों को सुन ही नहीं सकते, वरन् उन्हें प्रत्यक्ष देख भी सकते हैं।


दूरदर्शन को अंग्रेजी में टेलीविजन कहा जाता है। दूरदर्शन का आविष्कार सन् 1925 में महान वैज्ञानिक जेम्स लोगी बेयर्ड ने किया था। भारत में 15 दिसंबर, 1959 को तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ० राजेंद्र प्रसाद द्वारा प्रथम दूरदर्शन कार्यक्रम का उद्घाटन किया गया था।

दूरदर्शन ने हमारे जीवन को बहुत प्रभावित किया है। दूरदर्शन पर अनेक प्रकार के कार्यक्रम दिखाए जाते हैं, जिनसे मनोरंजन के साथ-साथ हमारा ज्ञानवर्धन भी होता है। इस पर दिखाए जाने खाले कार्यक्रमों; जैसे-खेलकूद, नाटकों, कहानियों आदि द्वारा हमें नई-नई जानकारियाँ प्राप्त होती हैं। इस पर हर वर्ग के लोगों के लिए कार्यक्रम प्रस्तुत किए जाते हैं। कृषि-दर्शन द्वारा हमारे किसान भाई नई-नई तकनीकें जानकर, उनसे लाभ उठाकर अधिक-से-अधिक अन्न उपजा सकते हैं। इस पर विद्यार्थियों के लिए भी कई ज्ञानवर्धक कार्यक्रम प्रसारित होते हैं तथा समाचारों द्वारा हम देश-विदेश की छोटी-बड़ी सभी घटनाओं को देख सकते हैं।

शायद ही आज कोई ऐसा व्यक्ति होगा, जो दूरदर्शन से अपरिचित हो। आज तो यह गाँव-गाँव में पहुँच चुका है। इस पर दिखाए जाने वाले कार्यक्रमों से अनेक बुराइयाँ भी समाप्त की जा सकती हैं। 15 अगस्त और 26 जनवरी की परेड व झाँकियाँ भी हम घर बैठकर देख सकते हैं। दूरदर्शन पर दिखाए जाने वाले 'महाभारत', 'रामायण', 'चाणक्य' आदि धारावाहिक हमारे देश में ही नहीं वरन् विदेशों में भी लोकप्रिय हुए हैं। मौसम संबंधी जानकारी, स्वास्थ्य संबंधी जानकारी, कानूनी जानकारी, नौकरी तथा विवाह संबंधी जानकारी जैसे उपयोगी कार्यक्रम भी हम इस पर देख सकते हैं।

जहाँ दूरदर्शन इतना उपयोगी है, वहीं इससे कुछ हानियाँ भी हैं। इसको अधिक देखने से हमारी आँखों पर बुरा प्रभाव पड़ता है। इसमें दिखाई जाने वाली कुछ फ़िल्मों के कारण समाज में अनेक प्रकार की अनुशासनहीनता, पाश्चात्य शैली की नकल तथा अनेक बुराइयाँ फैल रही हैं। दूरदर्शन के कारण आजकल विद्यार्थियों का मन पढ़ाई में भी नहीं लगता है। वस्तुतः दूरदर्शन पर ऐसे कार्यक्रम प्रस्तुत किए जाने चाहिए, जिससे मानव का सर्वागीण विकास हो, नैतिकता और ज्ञान में वृद्धि हो।

विद्यार्थियों को चाहिए कि वे इस पर अच्छे व स्वस्थ मनोरंजक कार्यक्रम ही देखें।

                               
-प्रेरणा यादव

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