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एक बेबस बेटी

एक लड़की थी जिसका नाम पूनम था। वह अपने पिता श्यामलाल के साथ रहती थी। जब वह छोटी थी तब उसको माँ गुजर गई थी। इसीलिए पूनम और उसके पिता श्यामलाल एक छोटे से घर में रहते थे। पूनम एक अच्छी बेटी तो थी मगर श्यामलाल एक अच्छा पिता नहीं था। वह सिर्फ नाम का ही पिता था, मगर असल में वो एक नम्बर का जुआरी और शराबी आदमी था।


वह अपनी बेटी से घर के नौकरों जैसा सुलूक करता था। वह सुबह-सुबह घर से निकल जाता और सारा दिन अपने दोस्तों के साथ ऐश करके देर रात को घर लौटता था। उसकी बेटी हो उसे सँभालती और उसकी खाना परोस देती, और उल्टा वह उसी को डाँटता रहता और अत्याचार करता रहता। मगर वो बेचारों भी क्या करती। वह इस जिंदगी से भाग भी नहीं सकती थी। आखिर श्यामलाल उसका पिता था। उसे भी अपना जीवन असहनीय हो गया था।

आखिर अपने पिता के बिना उसका संसार में और कौन था। वह भी दूसरे बच्चों की तरह घर से बाहर निकलती थी मगर फर्क सिर्फ इतना था कि बाकी सारे बच्चे स्कूल और खेलने के लिए निकलते और पूनम घर के सामान खरीदने और बाज़ार करने निकलती थी और अपने ही उम्र के बच्चों को खेलते देख दुखी हो जाती। चूंकि वह बाहर निकलती, मोहल्ले के अन्य लोगों के साथ उसकी अच्छी जान पहचान हो गई, और बहुत लोग उसके दोस्त भी बन गए थे। अगर वह कुछ दिनों तक घर से बाहर न निकलती मोहल्ले के लोग उसका हाल पूछने उसके घर पहुँच जाते, मगर श्यामलाल इन सब से बहुत नाराज हो जाता।

सब लोग श्यामलाल से बहुत चिढ़ते क्योंकि वह अपनी छोटी सी बेटी पर बहुत अत्याचार करता था, मगर वो पूनम के लिए कुछ न कर पाते। श्यामलाल एक जिम्मेदार पिता बिल्कुल नहीं था। उसने पूनम को न ही कभी अच्छी शिक्षा दी और न हो उसे कभी अच्छे कपड़े व खिलौने दिए। उसे बस खुद से मतलब था।

एक दिन पूनम को बहुत बुखार आया, मगर उसका इलाज करना तो दूर, हाल पूछने वाला भी कोई नहीं था। उस दिन वह खाना न बना पाई। फिर, रोज की तरह उसका पिता रात घर लौटा, और पूनम को खाना परोसने का हुकुम दिया। वो बेचारी बुखार के मारे काँप रही थी। उसने बड़े ही मायापूर्ण भाव से उत्तर दिया कि, "पिता आज मैं खाना न बना पाई, क्योंकि मुझे बहुत बुखार है।" यह सुनकर श्यामलाल गुस्से से आग-बबूला होकर बोला, "अरे! तुम सारा दिन घर में बैठकर करती क्या हो, अभी तक खाना भी नहीं पकाया।" वह बहुत डर गई और रोने लगी, श्यामलाल ने उसे बहुत डाँटा और उस पर हाथ उठाने ही वाला था कि पूनम वहाँ से भाग गई और बाथरूम में छुप गई तथा दरवाजा अंदर से बंद कर दिया। श्यामलाल दरवाजे के जोर-जोर से पीटता रहा, और दरवाजा खोल' कहकर चीखने लगा। उसकी चीख से मोहल्ले के लोग इकट्ठे हो गए। बेचारी पूनम को समझ नहीं आ रहा था तो कहाँ जाए, अगर वह बाहर निकलती तो उसका पिता उसे मार देता। इसीलिए उसको आत्महत्या करने के सिवा और कोई रास्ता नहीं दिखा। उसने बाथरूम में रखे ब्लीचिंग पाउडर को बिना कुछ सोचे निगल लिया। वह कुछ देर वहीं बाथरूम में बंद रही और समय पर इलाज न मिलने की वजह से उसने वहीं दम तोड़ दिया। सभी लोग अंदर घुस गए और दरवाजे को तोड़ दिया। मगर तब तक बहुत देर हो चुकी थी। उसकी अस्पताल में भर्ती करवाया गया मगर डॉक्टरों ने जवाब दे दिया। इसी बीच किसी ने पुलिस को खबर दे दिया, और सभी ने श्यामलाल के विरूद्ध गवाही दी। श्यामलाल इससे बहुत डर गया और शहर छोड़ कर चला गया। मगर वह पूनम को कभी भुला न पाया। वह पुलिस से तो बच गया मगर वह ऊपरवाले के कानून से कभी न बच पाएगा। आखिर उसने एक नन्हीं सी जान का बचपन नष्ट किया था।

-प्रेरणा  यादव

                  

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