'जैसी संगति बैठिए तैसोई फल होत'
यह कहावत जीवन का सत्य है। मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। समाज की इकाई होने के कारण मनुष्य एक-दूसरे पर निर्भर रहता है। हर व्यक्ति किसी-न-किसी रूप में दूसरे की सहायता अवश्य करता है।
जिसके पास जो होगा, वह वही दूसरे को देगा। इत्र बनाने वाले की दुकान पर बैठने वाले को सुगंध का आनंद तथा लोहार की दुकान पर बैठने वाले को जला देने वाली चिंगारी ही मिलेगी।
सत्संगति का प्रभाव चाहे पड़े या न पड़े, पर यह सत्य है कि कुसंगति से आदमी अवश्य बिगड़ता है। यदि कुसंगति का प्रभाव बुरा न भी पड़े, तब भी कुसंग में रहने वाले को लोग बुरा अवश्य समझते हैं। कोई चाहे चोरी न भी करे, किंतु वह जिन लोगों के साथ उठता बैठता है, यदि वे चोर हैं, तो अन्य लोग यही सोचते हैं कि वह व्यक्ति भी अवश्य चोर होगा।
इसी तरह बुरा व्यक्ति यदि अच्छों की संगति करे, तो लोग उसे भी अच्छा समझते हैं।
-प्रेरणा यादव
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