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साहित्य समाज का दर्पण नहीं, बल्कि समाज साहित्य का दर्पण होता हैः मृदुला गर्ग

दिल्ली में दो साल बाद शब्द-सुरों का महाकुंभ 'साहित्य आजतक 2022' शुरू हो गया है. 18 नवंबर से 20 नवंबर तक दिल्ली में ये साहित्य का मेला चलेगा.  इस आयोजन में पहले दिन 'साहित्य और समाज' सेशन में मशहूर लेखिका मृदुला गर्ग और मैत्रेयी पुष्पा ने साहित्य और स्त्री विमर्श पर तमाम बातें कीं.


दिल्ली में आज से सुरों और अल्फाजों का महाकुंभ साहित्य आजतक शुरू हो गया है. इस तीन दिवसीय कार्यक्रम में कई जाने-माने मेहमान शामिल हो रहे हैं. साहित्य के सबसे बड़े महाकुंभ 'साहित्य आजतक 2022' के मंच से पहले दिन कई हस्तियों ने भाग लिया. इस दौरान 'साहित्य और समाज' सेशन में प्रख्यात कथाकार, लेखिका और सार्क साहित्य पुरस्कार विजेता मैत्रेयी पुष्पा और साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित लेखिका मृदुला गर्ग शामिल हुईं.  

इस दौरान मृदुला गर्ग ने कहा कि मैंने स्त्री और पुरुष दोनों की आजादी को लेखन में उतारा है. दोनों का आजाद रहना बेहद जरूरी है. बेहतर इंसान से ही प्रेम हो ये जरूरी नहीं है. पति, प्रेमी और बेहतर इंसान अलग-अलग हैं. अक्सर महिला झगड़े के चलते पति को छोड़ देती है और दूसरे इंसान के पास चली जाती है. इससे समस्या पूरी तरह से हल नहीं होने वाली.  

उन्होंने कहा कि चितकोबरा उपन्यास प्रेम पर आधारित है. इसको लेकर किसी को कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए. अगर समाज बंटा हुआ है, नफरत फैलाई जा रही है. एक तबके के मन में दूसरे के प्रति नफरत है. जिस समाज में कुपोषण है, बीमारियां फैल रही हैं, वहां स्त्री भी कमजोर रहेगी. स्त्री समाज से अलग नहीं है.  

मृदुला गर्ग ने कहा कि कहा जाता है कि साहित्य समाज का दर्पण होता है. ऐसा नहीं है, बल्कि समाज साहित्य का दर्णण होता है. पत्रकारिता के माध्यम से इस काम को बेहतर ढंग से किया जा रहा है. लेखक अपने जीवन का दर्द लेखनी में पिरोता है. उन्होंने कहा कि हर व्यक्ति में साहित्यिक गुण होते हैं जरूरत सिर्फ उन्हें पहचानने की होती है. इस दौरान मृदुला गर्ग ने कहा कि 'वे नायाब औरतें...' संस्मरण सुनाते हुए स्त्री और पुरुषों के बीच अंतर्संबंधों पर चर्चा की.  


आज भी गांवों में होते हैं स्त्रियों के लिए कई तरह के बंधनः मैत्रेयी पुष्पा  

वहीं कथाकार मैत्रेयी पुष्पा ने कहा कि गांव में स्त्रियों के लिए कई तरह के बंधन होते हैं. जब स्त्री पुरुष के बराबर चलने को कोशिश करती है तो माना जाता है कि वह आगे जा रही है. आज भी गांवों में कई ऐसी जगहें हैं, जहां स्त्रियों की हालत ठीक नहीं है. उन्होंने कहा कि मैंने अपने उपन्यास में स्त्री को आगे ले जाने को कोशिश की, लेकिन उस पर भी कई तरह की बातें होने लगीं. उसकी आलोचनी की जाने लगी.  

उन्होंने कहा कि कोई भी पाठक किताब तभी पढ़ता है, जब उसे लगता है कि उसी की जिंदगी से जुड़ी बात लेखन में कही जा रही है. मेरा पाठक वर्ग प्रबुद्ध वर्ग नहीं, बल्कि गांव का है. मेरे लेखन में उनका ही जीवन झलकता है, इस वजह से वे आसानी से जुड़ जाते हैं.  

बीते दिनों मैत्रेयी पुष्पा का दिल्ली की राजनीति पर आधारित उपन्यास आया है. इसके बाद क्या लिख रही हैं. इसके जवाब में मैत्रेयी पुष्पा ने कहा कि अब और विषय तलाश करेंगे, उन पर लिखा जाएगा.

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