आरएसएस के दत्तात्रेय ने राष्ट्र निर्माण में राज दरभंगा के योगदान को किया स्मरण

भारत के गौरवशाली इतिहास में राज दरभंगा का स्थान विशेष रहा है। भारत की सांस्कृतिक, आध्यात्मिक और शैक्षिक परंपराओं को संजोने और राष्ट्र निर्माण में योगदान देने वाले इस राजवंश की विरासत को सम्मानित करने के लिए आज राजधानी दिल्ली में एक राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया।



भारत के आध्यात्मिक, सांस्कृतिक और राष्ट्र निर्माण में राज दरभंगा का योगदान’ विषय पर आयोजित इस संगोष्ठी में प्रख्यात विचारकों, नीति निर्माताओं और सांस्कृतिक हस्तियों ने भाग लिया।

कार्यक्रम में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह श्री दत्तात्रेय होसबोले और केंद्रीय मंत्री श्री भूपेंद्र यादव मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित रहे। उन्होंने राज दरभंगा के योगदान को नमन करते हुए कहा कि इस राजवंश ने सदियों तक कला, शिक्षा, धर्म और संस्कृति की सेवा की है।

इस अवसर पर लेखक श्री तेजकर झा द्वारा लिखित पुस्तक *“राज दरभंगा: धर्म संरक्षण से लोक कल्याण”* का विमोचन किया गया। यह पुस्तक राज दरभंगा के ऐतिहासिक योगदान का दस्तावेज है। साथ ही यह कार्यक्रम राजघराने के सबसे युवा उत्तराधिकारी कुमार अरिहंत सिंह के 18वें जन्मदिवस के दिन आयोजित होने के कारण और भी विशेष बन गया।

श्री दत्तात्रेय होसबोले ने अपने उद्बोधन में कहा, “राज दरभंगा के महाराजाओं ने अंग्रेज़ी शासन के दौर में भी भारत की धार्मिक, सांस्कृतिक और शैक्षिक विरासत को सुरक्षित रखने में अग्रणी भूमिका निभाई। उन्होंने मंदिरों के जीर्णोद्धार, शिक्षण संस्थानों की स्थापना और धर्म-रक्षा को अपना जीवन समर्पित किया।”

उन्होंने आगे कहा, “जहाँ पश्चिम में राजाओं को विलासिता और दमन का प्रतीक माना जाता है, वहीं भारत में उन्हें विष्णु का स्वरूप माना गया क्योंकि उन्होंने राजा राम, जनक और हरिश्चंद्र जैसे आदर्शों को अपनाकर जनकल्याण के लिए काम किया।”


केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव ने कहा कि मिथिला और बिहार की सांस्कृतिक गरिमा को पुनर्स्थापित करने के लिए सरकार पूरी तरह प्रतिबद्ध है। उन्होंने कहा, “मिथिला सदियों से ज्ञान और आध्यात्म का केंद्र रहा है। राजा जनक से लेकर राज दरभंगा तक इस परंपरा को संजोया गया है। यह क्षेत्र भारत के सांस्कृतिक और दार्शनिक चिंतन की आत्मा रहा है।”

दरभंगा राजपरिवार की ओर से कुमार कपिलेश्वर सिंह ने सभा को संबोधित करते हुए कहा कि परिवार द्वारा संचालित ट्रस्ट आज भी शिक्षा, स्वास्थ्य, सांस्कृतिक संरक्षण और परोपकारी कार्यों में सक्रिय हैं। उन्होंने कहा, “मुझे गर्व है कि मेरा जन्म ऐसे परिवार में हुआ जिसने हमेशा लोककल्याण को सर्वोपरि रखा है। मैं इस परंपरा को पूरी निष्ठा और समर्पण से आगे बढ़ाता रहूंगा।”

ब्रिटिश काल की सबसे बड़ी जागीरों में शामिल राज दरभंगा केवल एक राजनीतिक सत्ता नहीं, बल्कि भारत की आध्यात्मिक और सांस्कृतिक चेतना का संरक्षक रहा है। इस वंश ने सनातन धर्म के संरक्षण, मैथिली भाषा के पुनरुद्धार, मंदिरों के जीर्णोद्धार और शिक्षा के प्रचार-प्रसार में अभूतपूर्व योगदान दिया। उनके कार्य आज भी भारत की सांस्कृतिक आत्मा में जीवित हैं।

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