कोरोना महामारी से एक बात तो साफ हो गई कि प्रकृति ही सबसे बड़ा धर्म है। इसने किसी भी धर्म को अनदेखा नहीं किया और सब पर बराबर की मार की है। चाहे वह किसी भी धर्म का हो, अमीर हो या गरीब, कोरोना ने किसी को नहीं छोड़ा।
वर्ष 2020 की शुरुआत पूरे विश्व के लिए अच्छी नहीं रही। हर मनुष्य में संरचनाओं का आधार ही प्रकृति है। यह एक ऐसा शास्त्रपूर्ण तर्क है, जो न मानते हुए भी सर्वमान्य है। अब यह तो तय है कि जब आपको मंदिर, मस्जिद या गुरुद्वारा व चर्च नहीं बचा सके, तो स्वीकार करें कि प्रकृति ईश्वरवाद से ऊपर है। इससे साथ सीमा से अधिक छेड़छाड़ किसी भी रूप में या कभी भी हम पर एक बड़ी मार दे सकती है।
पिछले पांच दशकों को ही देख लें, दुनियाभर में बिगड़ते पर्यावरण पर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हो-हल्ला मचा, पर वायु प्रदूषण हो, मरती नदियों हो या मिट्टी की बिगड़ती गुणवत्ता हो और प्राकृतिक वनों की कटाई हो, इन पर हमने ठीक से ध्यान नहीं दिया। वैसे अंतर्राष्ट्रीय शोर- गुल के बीच समाधान निकालने की कोशिश भी हुई, पर वे आधी-अधूरी ही रही।
यही समय है कि हम सभी गफलत भरी मान्यताओं को दरकिनार करते हुए प्रकृति के सिद्धांतों और नियमों को समझकर अपना आनेवाला समय तय करे। अपनी सीमाओं को जान ले और उल्लंघनों के दोष को समझ ले। शायद तब ही हम बच पायें। कोरोना भी प्रकृति का ही उत्पाद है और इसने इशारा कर दिया है कि अब ज्यादा खंडता स्वीकार नहीं है। हमारा पहला दायित्व इनके संरक्षण की चिंता से जुड़ा होना चाहिए।
विकास की अंधी दौड़ में विनाशा ने आंखें खोल दी, पर अभी लड़खड़ाए ही हैं, पूरी तरह गिरे नहीं। आज प्रकृति के बचने-बचाने की चिंता पर ज्यादा बात होनी चाहिए। आज जैसी महामारी दुनिया में सभी धर्मों को झेलनी पड़ रही हैं। उसका संकेत स्पष्ट है कि प्रकृति ही सब कुछ है और बेहतर जीवन इसी से संभव है। अच्छा होगा, हम इसको जितना जल्दी समझें और अपनी जीवनशैली सुधार, हम अपना आनेवाला समय श्रेष्ठ कर सकेंगे। अगर समझ में आ जाये कि प्रकृति ही हमें बचा सकती है, तो हम मिलकर इसका नमन करे और माफी मांगते हुए उसकी अलौकिक क्षमताओं पर कार्य करें।
प्रार्थना करें कि अब कोरोना न रहे, बल्कि करो ना पर उतर आयें। प्रकृति मंत्र से ही जीवन तंत्र जुड़ा है और तब ही इस महामारी से अच्छी तरह मुकाबला कर पायेंगे।
कोलकाता
धर्म के नाम पर अपने आप को कोरोना से सुरक्षित नहीं रखा जा सका है। दुनिया के सबसे बड़े ईसाई धर्म में चाहे इटली हो, स्पेन हो या फिर अमेरिका इसकी मार से कोई नहीं बचा है। यहां तक कि चीन में बौद्ध धर्म के अनुयायियों को ही सबसे पहले कोरोना का कहर झेलना पड़ा है और अपने देश भारत में भी हिंदुओं पर हनुमान जी की आशीर्वाद नहीं बनी और इसी तरह इस्लाम में भी अल्लाह के बंदे को इसकी नेमत हासिल नहीं हुई। कितनी अजीब बात है कि आज कोरोना ने सारे मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारा और चर्च में ताले जड दिए गाए हैं।
इसका मतलब यह है कि अब प्रभु की प्रार्थना भी स्वीकार नहीं, जब से संसार बनी और जीवन व मनुष्य को पनपाया। तब से हम खेमों में नहीं बंटे थे। प्रकृति ने हमें बेहतर जीवन जीने के गुण दिये। हमने अपने तरीके से जीने के रास्ते को धर्मों में बांट दिए।
वर्ष 2020 की शुरुआत पूरे विश्व के लिए अच्छी नहीं रही। हर मनुष्य में संरचनाओं का आधार ही प्रकृति है। यह एक ऐसा शास्त्रपूर्ण तर्क है, जो न मानते हुए भी सर्वमान्य है। अब यह तो तय है कि जब आपको मंदिर, मस्जिद या गुरुद्वारा व चर्च नहीं बचा सके, तो स्वीकार करें कि प्रकृति ईश्वरवाद से ऊपर है। इससे साथ सीमा से अधिक छेड़छाड़ किसी भी रूप में या कभी भी हम पर एक बड़ी मार दे सकती है।
पिछले पांच दशकों को ही देख लें, दुनियाभर में बिगड़ते पर्यावरण पर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हो-हल्ला मचा, पर वायु प्रदूषण हो, मरती नदियों हो या मिट्टी की बिगड़ती गुणवत्ता हो और प्राकृतिक वनों की कटाई हो, इन पर हमने ठीक से ध्यान नहीं दिया। वैसे अंतर्राष्ट्रीय शोर- गुल के बीच समाधान निकालने की कोशिश भी हुई, पर वे आधी-अधूरी ही रही।
यही समय है कि हम सभी गफलत भरी मान्यताओं को दरकिनार करते हुए प्रकृति के सिद्धांतों और नियमों को समझकर अपना आनेवाला समय तय करे। अपनी सीमाओं को जान ले और उल्लंघनों के दोष को समझ ले। शायद तब ही हम बच पायें। कोरोना भी प्रकृति का ही उत्पाद है और इसने इशारा कर दिया है कि अब ज्यादा खंडता स्वीकार नहीं है। हमारा पहला दायित्व इनके संरक्षण की चिंता से जुड़ा होना चाहिए।
विकास की अंधी दौड़ में विनाशा ने आंखें खोल दी, पर अभी लड़खड़ाए ही हैं, पूरी तरह गिरे नहीं। आज प्रकृति के बचने-बचाने की चिंता पर ज्यादा बात होनी चाहिए। आज जैसी महामारी दुनिया में सभी धर्मों को झेलनी पड़ रही हैं। उसका संकेत स्पष्ट है कि प्रकृति ही सब कुछ है और बेहतर जीवन इसी से संभव है। अच्छा होगा, हम इसको जितना जल्दी समझें और अपनी जीवनशैली सुधार, हम अपना आनेवाला समय श्रेष्ठ कर सकेंगे। अगर समझ में आ जाये कि प्रकृति ही हमें बचा सकती है, तो हम मिलकर इसका नमन करे और माफी मांगते हुए उसकी अलौकिक क्षमताओं पर कार्य करें।
प्रार्थना करें कि अब कोरोना न रहे, बल्कि करो ना पर उतर आयें। प्रकृति मंत्र से ही जीवन तंत्र जुड़ा है और तब ही इस महामारी से अच्छी तरह मुकाबला कर पायेंगे।
- भावना भारती
एमिटी यूनिवर्सिटीकोलकाता
Good
ReplyDeleteDeepanwita Dey : wow
ReplyDelete👍👍👍👍👍
ReplyDeleteNiceee
ReplyDeleteGoood
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