वर्ष 2020 की शुरुआत पूरी दुनिया के लिए बहुत दर्दनाक रही है। पिछले वर्ष के अंतिम दिनों से ही कोरोना वायरस जनित, रोग कोविड -19 के मनहूस साये ने धीरे-धीरे पूरी दुनिया को अपने चपेट में ले लिया। लेकिन कोरोना महामारी ने एक बात तो साफ कर दी है कि इसने किसी भी धर्म को अनदेखा नहीं किया और सब पर बराबर की मार की है।
भारत में कोरोना का पहला मामला फरवरी महीने में सामने आया, परन्तु मार्च आते ही इस महामारी ने भारत को अपने कब्जे में लेना शुरू कर दिया। मार्च महीना होने के नाते संसद, विभिन्न विधानसभाओं का बजट-सत्र चालू था। इस समय आर्थिक गतिविधियां भी चरम पर होती हैं। ऐसे समय में कोरोना संक्रमण से बचने के लिए भारत सहित पूरी दुनिया लॉकडाउन में थम सी गई।
कोरोना वायरस की उत्पत्ति, इसकी घातक क्षमता और निदान सभी कुछ अनिश्चित है, लेकिन इसके संक्रमण के तेजी से फैलाने की प्रकृति पूरी दुनिया में निर्विवादित है। कोरोना के साथ लड़ना है, तो हमें इस सच को स्वीकारना होगा कि अब कोरोना के साथ ही हमें जीना है।
कोविड-19 के उत्पत्ति स्थल के संबंध में कोई संशय नहीं है। चीन ने खुद स्वीकार किया कि वुहान से इसकी शुरुआत हुई है। संभावित स्रोत के बारे में समुद्री जीव-जंतु, चमगादड़, सूअर और पैंगोलिन आदि के संबंध में चर्चा हुई, लेकिन कोई निश्चित धारणा अभी तक नहीं बन पायी है। दुनिया जानती है कि वुहान में विषाणु विज्ञान से संबंधित अंतर्राष्ट्रीय स्तर का एक प्रमुख शोध संस्थान है। चीन द्वारा गोपनीय तरीके से जैविक हथियार से संबंधित अनुसंधान के दौरान कोरोना की उत्पत्ति एवं विस्तार की बात भी जोर-शोर से आयी। हमें नहीं भूलना चाहिए कि जिस प्रकृति ने हमें पैदा किया, कोरोना भी उसी से पैदा हुआ है। यह विडंबना है कि उस वायरस ने सारी दुनिया को घर पर बैठने के लिए हताश व मजबूर कर दिया।
कोरोना इतने लोगों को नहीं मारता, जितना लोग डर रहे हैं। जिन लोगों को ऐसा भय या शॉक है, वो डिप्रेशन में जा रहे हैं। उन्हे अकेला न छोड़ें। उनके साथ संवाद बनाये रखें। जो लोग ऑब्शेसन में हैं। उन्हें एकदम से आइसोलेट करने से वे बड़ी परेशानी में आ सकते हैं। आइसोलेशन का मतलब फिज़िकल डिस्टेसिंग नहीं।
कोरोना प्रकृति का दंड है। कोरोना को प्रकृति के दूत के रूप में देखने की कोशिश कुछ सिखायेगी भी। उसने एक ही चोट से यह बताने की कोशिश की है कि प्रकृति को अवहेलना अब सहन नहीं होगी। आज कोरोना है, कल कुछ और होगा। इस महाहारी से हमें यह भी समझ लेनी चाहिए कि दुनिया में जाति- वर्ग या किसी दर्शन से ऊपर उठकर पृथ्वी में जीवन पनपा, तो वह प्रकृति की देन थी। इसलिए समय आ गया है कि अब हम शांतचित्त से प्रकृति के विज्ञान व व्यवहार को नये सिरे से समझें।
आज तक किसी वायरस का खात्मा पूर्ण रूप से नहीं हो पाया है। इसका आनुवांशिक रुपांतरण भी होता ही रहता है। अतः हमें अभी के परीक्षित उपायों एवं अनुभव के आधार पर भविष्य का रास्ता बनाना है।
-भावना भारती
एमिटी यूनिवर्सिटी
कोलकाता
Upasana: 👍👍👍
ReplyDelete👍👍👍👍👍
ReplyDeleteGood
ReplyDeleteNice
ReplyDeleteDeepanwita Dey : wow
ReplyDelete