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रक्षाबंधन

राखी के पावन धागों में छिपा बहन का पावन प्यार।
भगिनी की रक्षा का बंधन है रक्षाबंधन त्योहार ॥

 भारत के त्योहारों में रक्षाबंधन का अपना विशेष महत्व है। यह त्योहार भाई को बहन के प्रति उसके कर्तव्य की याद दिलाता है। श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन यह त्योहार मनाया जाता है. इसीलिए इसे 'श्रावणी' भी कहा जाता है।


पुराणों की कथा के अनुसार एक बार देवताओं और राक्षसों के बीच भीषण युद्ध हुआ, जिसमें देवता हारने लगे। इंद्र की पत्नी शची ने देवताओं को राखी बाँधी देवताओं ने राक्षसों को युद्ध में हराया। इसी प्रकार जब बहादुरशाह ने मेवाड़ पर आक्रमण किया था तो चित्तोड़ की महारानी कर्मवती ने हुमायूँ को राखी भेजी थी तथा हुमायूँ ने महारानी कर्मवती की रक्षा के लिए तत्काल प्रस्थान कर दिया था। इस दिन बहनें थाली में मिठाई तथा राखी रखकर भाइयों को तिलक करती हैं और उनके हाथ में राखी बाँधती हैं। भाई बहन की रक्षा का वचन देता है तथा उपहारस्वरूप जो कुछ भी बन पड़ता है, देता है।

रक्षाबंधन का त्योहार भाई-बहन के पवित्र स्नेह का प्रतीक है। यह त्योहार इन संबंधों को और मधुर बना देता है। रक्षाबंधन का त्योहार पूरे देश में मनाया जाता है। प्राचीनकाल में राखी
धने का काम पुरोहित भी किया करते थे। पुरोहित यजमान के हाथ में राखी बाँधते थे   और आशीर्वाद देते थे। मध्य युग में बहने अपने वीर भाइयों के हाथ में राखी का सूत्र बाँधकर उन्हें सजाकर युद्धभूमि में भेजती थी।

इस त्योहार का मूल उद्देश्य तो बहनों को रक्षा करना या देश की शत्रुओं से रक्षा करना है, लेकिन आजकल लगता है यह भावना समाप्त होती जा रही है। आजकल भाई अपनी बहन को उपहारस्वरूप कुछ धनराशि देता है तथा इसी को अपना कर्तव्य मानकर संतुष्ट हो जाता है। रक्षाबंधन का त्योहार एक पवित्र त्योहार है। अतः हमें इसे धन से नहीं तोलना चाहिए. अपितु इसकी मूल भावना को अपनाना चाहिए। राखी की कीमत उसके धागों में नहीं, बल्कि इन धागों में छिपे बहन के प्यार में है। वस्तुतः यह त्योहार भाई व बहन के बीच असीम प्यार व स्नेह का प्रतीक है। रक्षाबंधन के दिन भाइयों को वीर तथा उत्साही बनने का व्रत भी लेना चाहिए।

-प्रेरणा यादव

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