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मन के नियंत्रण का अभ्यास

भारतवर्ष में जितने भी धर्म या संप्रदाय पैदा हुए हैं, इन सब का एक ही सिद्धांत है कि मनुष्य का मन बहुत चंचल है, चंचलता दूर करके उसका एकाग्र करना बहुत आवश्यक है। बिना मन की  एकाग्रता कि किसी भी क्षेत्र में मनुष्य को सफलता प्राप्त नहीं हो सकती। चित्त की वृत्तियां अनेक है, चित्त की उन सब वृत्तियों को एकाग्र करने से ही

सकती और प्रगढ़ता आती है। जरा विचारे ,सूर्य के किरणों पृथ्वी पर फैली होती है, जब एक अताशी शीशा उनके सामने रखा जाता है तब उनकी किरणों एक बिंदु पर केंद्रित  हो जाती है और उनकी शक्ति आ जाती है कि जिस स्थान पर भी वह सूर्य बिंदु केंद्रित होगा वही अपनी शक्ति से अग्नि प्रज्वलित कर देता है। इस प्रकार जो भी मनुष्य अपनी बिखरी हुई शक्तियों को जितना अधिक एकाग्र कर लेता है उसको उतनी ही अधिक सफलता प्राप्त होती है, चाहे वह कर्म लौकिक हो या पारमार्थिक। विद्यार्थी का ही उदाहरण लीजिए - जो विद्यार्थी जितना अधिक मन लगाकर पड़ेगा उसको उतनी ही अच्छी और उनकी सफलता मिलेगी। मन की एकाग्रता का यह सिद्धांत प्रत्येक कार्य पर लागू होता है। इसीलिए हमारे सभी धर्म ग्रंथ मन की एकाग्रता पर अधिक महत्व देते हैं क्योंकि बिना इसकी सफलता कठिन ही नहीं वरन और संभव है। संत कबीर साहब ने कहा है।
“मन के मते न चलिए, मन के मते अनेक”

चंचल मन को नियंत्रण करने का उपाय है।युग की तमाम विधियां मन को केवल एकाग्र करने के ही साधन है। हिप्नोटिज्म और मेस्मोरिज्म से भी चित्त वृत्तियों को एकाग्र करना पड़ता है। बिना इसके सफलता प्राप्त नहीं होती।तात्पर्य है कि यदि हम अपने मन के दास बने रहेंगे तो हमारा मन इधर-उधर भटकता तक रहेगा और हमें किसी भी कार्य में सफलता नहीं मिल पाएगी। मन को नियंत्रण में रखने के लिए यह बहुत आवश्यक है कि हम स्वयं को नियंत्रण में रहे और हम जिधर चाहे उसे लगा सके। मन इंद्रियों का राजा है। यदि हमारा मन ही हमारे गांव में ना रहे तो हमारी इंद्रियां हमें जाने कहां कहां ले जाकर पटकेंगी  और हमको दुख और मुसीबत में डालेंगे। अतः साधक के लिए यह परम आवश्यक है कि वह मन का दास ना बन कर उस पर नियंत्रण रखें। सच है कि उन्ही का  जीवन में सफल और सार्थक हैं, जो छोटी से छोटी बातों में भी आत्म निरीक्षण करते हैं। वे कभी अपने  को मन के  गुलाम नहीं बनने देते। ऐसे मनुष्य को बड़े से बड़े प्रलोभन भी नहीं हिला सकता, मैं स्वयं ही संसार को हिला सकते हैं क्योंकि उनका विवेक सत्य पर आधारित रहता है।
                                


-प्रेरणा यादव

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