प्रदूषण

'प्रदूषण' शब्द का अर्थ है-वायुमंडल या वातावरण का दूषित होना। प्रदूषण की समस्या आज सारे विश्व के सामने विकराल रूप धारण करती जा रही है। आज प्रदूषण की समस्या ने संसार के समस्त प्राणियों के स्वास्थ्य के आगे एक प्रश्नचिह्न लगा दिया है। प्रदूषण चार प्रकार का हो सकता है-प्रदूषण, जल प्रदूषण, ध्वनि प्रदूषण तथा भूमि प्रदूषण वायुप्रदूषण का प्रकोप सबसे अधिक महानगरी पर हुआ है।


इसका कारण है औद्योगिकीकरण। कारखानों को चिमनियों से चौबीसों घंटे निकलने वाले धुएं ने सारे वातावरण को विषाक्त बना दिया है। सड़कों पर चलने वाले वाहनों के धुएँ से निकलने वाली "कार्बन मोनोअक्साइड गैस के कारण आज साँस और फेफड़ों को न जाने कितने प्रकार की बीमारियाँ आम बात हो गई है। शहरों की बढ़ती जनसंख्या के लिए आवास की सुविधाएँ उपलब्ध कराने के लिए वृक्षों और वनों को भी निरंतर काटा जा रहा है। वायु प्रदूषण से बचाने वाले उपायों की हमें खोज करनी चाहिए। कारखानों को नगर से कहीं दूर लगाया जाना चाहिए। पर्यावरण का रक्षा के लिए अधिक से अधिक वृक्ष लगाए जाने चाहिए।

जल प्रदूषण भी आज एक विकट समस्या बन गया है। गाँवों में तो लोगों को स्वच्छ हवा और स्वच्छ जल मिल जाता है. परंतु नगरों में वायु और जल दोनों ही दूषित हो गए हैं। कारखानों का दूषित जल, बचे हुए रसायन, कचरा सभी कुछ नालों से होता हुआ नदियों में मिल जाता है। इसके अलावा नदी-तालाबों में, जिनका जल पीने के लिए प्रयुक्त होता है। लोगों का नहाना, कपड़े धोना, मल-मूत्र डालना, शवों की राख डालना, जानवरों को गरी डालना ऐसे अवगुण हैं, जिनके कारण जल प्रदूषित हो जाता है और इससे तरह-तरह के रोग, जैसे- पीलिया, हैजा, पेचिश, मलेरिया, डेंगू आदि फैलते हैं।

नगरों और महानगरों में ध्वनि प्रदूषण भी मनुष्य के जीवन को तनावयुक्त बनाए रखने का एक प्रमुख कारण है। सड़कों पर शोर करते हुए वाहनों की आवाज का हमारी श्रवण शक्ति प प्रभाव पड़ता ही है, इसके अतिरिक्त यह हृदय रोग तथा रक्तचाप की बीमारियों को भी जन्म देता है। लोग दूसरों को सुविधा का ध्यान न रखते हुए रेडियो, टेपरिकॉर्डर, लाउडस्पीकर को तेव आवाज़ में बजा-बजाकर ध्वनि प्रदूषण फैलाते हैं। इन सब पर प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए।

भूमि प्रदूषण भी आज के वैज्ञानिक युग की देन है। उपज बढ़ाने के लिए आज लोग जमीन में न जाने कौन-कौन सी रासायनिक खादों को डालते हैं। इन खादों और रसायनों से फसल तो अधिक मात्रा में प्राप्त हो जाती है. पर ऐसी प्रदूषित भूमि से उत्पन्न होने वाला अनाज, सब्जियाँ, दालें आदि सभी प्रदूषित हो जाते हैं। इनको खाने से लोगों में उदर संबर्ध न जाने कितने प्रकार के रोग विकसित हो जाते हैं।

पर्यावरण की सुरक्षा के लिए वन रोपण तथा वृक्ष लगाने होंगे और जनसंख्या वृद्धि अंकुश लगाना होगा। अणु / परमाणु परीक्षणों पर रोक लगानी होगी। रासायनिक पदार्थों का उपयोग कम करना होगा। शोर मचाने वाले यंत्रों, चिल्ल-पी करने वाले वाहनों पर निय रखना होगा। यदि हम यह सब कर पाने में अक्षम रहे, तो आने वाले वर्षों में हमारा जीवन दूभर हो जाएगा।

-प्रेरणा यादव

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