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प्रातः काल की सैर

प्रातःकाल में उगते हुए सूर्य की लालिमा, चिड़ियों की चहचहाहट और शीतल मंद सुगंधित समौर हमारे शरीर और आत्मा को अपनी मधुरता से भर देती है। एक नई उमंग एवं उल्लास से मन प्रफुल्लित एवं उत्साहित होकर नए दिन की तैयारी में लग जाता है। कहा भी गया है कि अगर दिन की शुरुआत अच्छी हो, तो पूरा दिन भी

अच्छा निकलता है। जिसने प्रात:कालीन सैर की आदत डाल ली, मानो उसने जीवन की कला सीख ली, शरीर को स्वस्थ रखने का मंत्र सीख लिया, समय के एक-एक क्षण का महत्व सीख लिया।


पश्चिमी सभ्यता का अनुकरण करने वाले लोग उस प्रातः कालीन सुंदरी के सौंदर्य को क्या जानें, जिन्होंने कलकल करते झरनों का स्वर, फूलों का खिलना, भौरों का गुनगुनाना, पक्षियों का चहचहाना कभी नहीं सुना। ऐसे लोगों का जीवन निस्सार एवं शून्य है, जिन्होंने प्रकृति का सान्निध्य कभी प्राप्त ही नहीं किया।

प्रात:कालीन सैर से मनोमस्तिष्क ताज़गी से भर उठता है, आलस दूर भागता है, पढ़ने में मन लगता। है तथा सभी काम सुचारु रूप से नियमित समय पर पूरे होते चले जाते हैं। जीवन में निश्चिंतता आ जाती है और ऐसा व्यक्ति जीवन की दौड़ में आगे ही आगे रहता है, क्योंकि जल्दी सोने और जल्दी उठने से व्यक्ति स्वस्थ, संपन्न एवं सुयोग्य बनता है। हम सभी को प्रातःकाल के इस सौंदर्य का दर्शन करना चाहिए। यह तभी संभव है, जब हम अपना आलस्य छोड़कर प्रातः काल की सैर के लिए घर से बाहर निकलें। इससे हमारे तन-मन दोनों स्वस्थ होंगे
- प्रेरणा यादव

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