प्रत्येक मनुष्य के मन में अनेक इच्छाएँ उमड़ती रहती हैं। इन्हीं इच्छाओं के कारण हर इंसान जीवन में अपने लक्ष्य के बारे में कुछ-न-कुछ निर्णय लेता है। हर व्यक्ति चाहता है कि वह जीवन में कुछ ऐसा कार्य करे, जिससे समाज में उसका सम्मान हो, उसके परिवार का नाम हो। जब मैंने भी अपने लक्ष्य के बारे में सोचा, तो मेरे मन में अनेक विचार आए। लेकिन काफी सोच-विचार कर मैंने अध्यापन कार्य करने का निश्चय किया है।
मैं यह अच्छी तरह जानती हूँ कि अध्यापन कार्य में अधिक धन की प्राप्ति नहीं है, लेकिन मुझे ऐसा प्रतीत होता है कि अध्यापक ही राष्ट्र का निर्माण करने में सक्षम होता है। अध्यापन कार्य एक पवित्र कार्य है। इसमें किसी भी प्रकार के छल-कपट, लोभ-लालच आदि के लिए स्थान नहीं है। इसीलिए मैंने अध्यापन कार्य को ही उचित समझा है। आजकल समाज में फैली हुई अराजकता आदि का मुख्य कारण शिक्षा का अभाव ही है।
यदि मैं अपने इस उद्देश्य में सफल हुई , तो मेरा जीवन धन्य हो जाएगा। गुरु और शिष्य के बीच आजकल जो खाई पैदा हो गई है, उसे मैं दूर करने का प्रयास करुंगी। मेरे विचार से गुरु केवल एक जो व्यक्ति का सही मार्गदर्शन कर सकता है। गुरु की महिमा का वर्णन करते हुए कबीर दास जी ने भी कहा है
गुरु गोविंद दोऊ खड़े, काके लागू पाय
बलिहारी गुरु आपने, गोविंद दियो बताय।।
गुरु ही अपने शिष्य को अज्ञान के अंधेरे से निकालकर ज्ञान के प्रकाश की ओर ले जाता है। मेरे माता-पिता भी दूसरे लोगों की तरह धनोपार्जनवाला व्यवसाय चुनने को प्रेरित करेंगे, लेकिन मेरी ऐसी कोई अभिलाषा नहीं है। मैं तो जीवन में ऐसा अध्यापक बनना चाहती हूँ, जो समाजसेवी और कर्तव्यनिष्ठ हो तथा जो राष्ट्र के कर्णधारों को सही दिशा-निर्देश दे सके। अध्यापक ही छात्रों का चरित्र निर्माण करते हैं। वे ही उनमें कर्तव्य की भावना भर सकते हैं। इन्हीं बातों को ध्यान में रखते हुए मैंने अध्यापक बनने का सपना संजोया है।
मैं भगवान से यही प्रार्थना करती हूँ कि वे मुझे इतना साहस दें कि मैं अपने उद्देश्य में सफल होऊँ तथा धन आदि के लोभ में न पड़कर, सेवा भाव से अध्यापिका बनकर राष्ट्रहित के लिए अपना जीवन समर्पित कर सकूँ।
-प्रेरणा यादव
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