पृथ्वी की प्यास बुझाने, गरमी से तपे हुए मनुष्यों, पशु-पक्षियों और जीव-जंतुओं को शीतलता देने वाली जो ऋतु है, वह है- वर्षा ऋतु। वर्षा ऋतु आषाढ़ से शुरू होकर भादों के अंत तक रहती है। प्रायः 15 जुलाई से 15 सितंबर तक वर्षा के दिन होते हैं। सूर्य की किरणें जब समुद्र के जल पर पड़ती हैं, तो पानी भाप बनकर उड़ जाता
है। वह जमा होकर बादल का रूप धारण कर लेता है। पवन इन बादलों को उड़ाकर पर्वतों की ओर ले जाती है। पर्वतों से टकराकर कुछ बादल बरस पड़ते हैं। कुछ बादलों को पवन मैदानों तक ले जाती है। वे आपस में टकराकर बरस पड़ते हैं।जब पुरवाई चलती है, तो बादलों को साथ लाती है। बादलों को देखकर मोर नाचने लगते हैं। बालक-बालिकाएँ भी झूमकर खुश होते हैं। नर-नारी, पशु-पक्षी भी प्रसन्न हो जाते हैं। बच्चे झूलने लगते हैं। शीतल समीर बहने लगती है। इस ऋतु में तीज, स्थाबंधन जैसे त्योहार मनाए हैं। चारों तरफ हरियाली ही हरियाली दिखाई देती है। रिमझिम बारिश से लोग प्रसन्न होते हैं, पर जब मूसलाधार बारिश होती है, तो लोग इससे बचने के लिए इधर-उधर भागते हैं। अधिकता चीज की बुरी होती है। अधिक वर्षा से बाद आ जाती है, जिससे सामान्य जन-जीवन को भारी पति पहुँचती है।
वर्षा ऋतु बहुत सुहावनी होती है, इसलिए इसे ऋतुओं की रानी' कहा जाता है।
- प्रेरणा यादव
No comments:
Post a Comment